7 सितंबर से जारी इजरायल और हमास के बीच चल रहा युद्ध और भी भयानक होता जा रहा है| हमास ने अचानक बीते 7 अक्टूबर की सुबह इजरायल पर लगभग 5 हजार रॉकेट छोड़ कर पूरी दुनिया को काफी हैरान कर दिया था|
भारत के पीएम नरेंद्र मोदी ने इसे आतंकी हमला करार दिया साथ ही इस कठिन घड़ी में इजरायल का साथ भी दिया उन्होंने हमास से युद्ध के बीच इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू से कहा था, “इस मुश्किल घड़ी में भारत इजरायल के साथ है|
इससे पहले कभी भारत ने इजरायल का इस तरह खुलकर समर्थन नहीं किया था| वहीं पीएम मोदी ने अपने मैसेज में फिलीस्तीन को लेकर कुछ भी नहीं कहा हालांकि, भारत के फीलिस्तीन से जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के जमाने से अच्छे संबंध रहे हैं|
वक्त के साथ बदले संबंध-
इजरायल और फिलिस्तीन के साथ भारत के रिश्ते वक्त-वक्त पर बदलते रहे हैं. इस मु्द्दे पर इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे चिन्मय गरेखान ने कहा कि 1947 में जब संयुक्त राष्ट्र में अरबों और यहूदियों के बीच फलस्तीन के बंटवारे का प्रस्ताव आया तो भारत ने उसके खिलाफ वोट दिया उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का मानना था कि एक राष्ट्र में रहने से इतर अरबों और यहूदियों को ज्यादा स्वायत्तता मिलनी चाहिए. इसके अलावा उनका मत यरुशलम को विशेष दर्जा देने के पक्ष में भी था.
अरब देशों से भारत के रिश्तों पर पड़ेगा असर-
भारत के अरब देशों से भी अच्छे रिश्ते रहे है| वहीं इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो अरब देश हमेशा से फिलिस्तीन के समर्थक रहे है| पिछले कुछ समय से खुद अरब देशों की दिलचस्पी फिलिस्तीन में कम हो गई है लेकिन हमास और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध से अरब देशों में इस मुद्दे पर बहस जरूर छिड़ी है चिन्मय गरेखान इस मुद्दे पर कहते हैं कि ये जाहिर है कि फिलीस्तीन इस बात से खुश नहीं होगा लेकिन भारत को इस बात का डर भी नहीं होना चाहिए|
तो वही सऊदी अरब इजरायल से रिश्ते सामान्य करने में आगे बढ़ रहा है| इस युद्ध से फिलिस्तीन के प्रति अरब देशों में सहानभूती तो होगी लेकिन इसका दूसरे देशों के साथ भारत के रिश्तों पर असर नहीं पड़ेगा इसके अलावा अरब देश भारत से सिर्फ इसलिए रिश्ते कभी खराब नहीं करना चाहेंगे या भारत से दुश्मनी नहीं करेंगे कि उसने इजरायल का समर्थन किया है|